अभिमानी और अहंकारी रावण युद्ध में मारा गया । धर्म और सत्य की विजय हुई । देवताओं का कार्य पूरा हुआ । विभीषण को लंका का राजा बना कर श्री राम अयोध्या लौट आए । अयोध्या में श्री राम का राज्याभिषेक हुआ और इस तरह राम राज्य की नीवँ पड़ी ।
पाई न केहिं गति पतित पावन राम भजि सुनु सठ मना।
गनिका अजामिल ब्याध गीध गजादि खल तारे घना॥
आभीर जमन किरात खस स्वपचादि अति अघरूप जे।
कहि नाम बारक तेपि पावन होहिं राम नमामि ते ॥1॥
रघुबंस भूषन चरित यह नर कहहिं सुनहिं जे गावहीं।
कलि मल मनोमल धोइ बिनु श्रम राम धाम सिधावहीं॥
सत पंच चौपाईं मनोहर जानि जो नर उर धरै।
दारुन अबिद्या पंच जनित बिकार श्री रघुबर हरै ॥2॥
सुंदर सुजान कृपा निधान अनाथ पर कर प्रीति जो।
सो एक राम अकाम हित निर्बानप्रद सम आन को॥
जाकी कृपा लवलेस ते मतिमंद तुलसीदास हूँ।
पायो परम बिश्रामु राम समान प्रभु नाहीं कहूँ ॥3॥
राम चरित मानस से स्पष्ट होताहै कि पृथ्वी पर जब जब भी रावण पैदा होंगे, उनके विनाश के लिये राम भी पैदा होंगे । तुलसी के राम की जय का अर्थ है, जीव की जय, मर्यादा की जय, लोक की जय , मानवता की जय ।
श्री राम जय राम जय जय राम ।
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© श्री राम गीत गुंजन
Shri Ram Geet Gunjan
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