ब्रह्म अनामय अज भगवंता

लंका को जला कर हनुमानजी लौट आये । उन्होंने श्री राम को माँ सीता का संदेश दिया । सीता का संदेश एवं समाचार पाकर श्री राम ने हनुमानजी को अपने हृदय से लगा लिया । 
सीताजी को लंका से लौटा लाने की तैयारियाँ होने लगी । राम नाम के प्रभाव से सागर नें पत्थर तैरने लगे । 

राम नाम मनि दीप धरि जीह देहरी द्वार ।
तुलसी भीतर बाहरेहु जो चाहसि उजियार ॥ 

ब्रह्म अनामय अज भगवंता | व्यापक अजित अनादि अनन्ता ॥
हरि व्यापक सर्वत्र समाना । प्रेम ते प्रकट होंहिं मैं जाना ॥
यद्यपि प्रभु के नाम अनेका । श्रुति कहँ अधिक एक ते एका ॥
राम सकल नामन्ह तें अधिका । होउ नाथ अघ खग गन बधिका ॥

जिन्ह कर नाम लेत जग माँहीं । सकल अमंगल मूल नसांहीं ॥
कर तल होइ पदारथ चारी । तेइ सिय राम कहेउ कामारी ॥
जासु नाम जप सुनहुं भवानी । भव बन्धन काटहिं नर ग्यानी ॥
जपहिं नाम जन आरत भारी । मिटहिं कुसंकट होंहि सुखारी ॥

जड़ चेतन जग जीव जत । सकल राममय जानि ।
बन्दउँ सबके पद कमल । सदा जोरि जुग पानि ॥

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© श्री राम गीत गुंजन

Shri Ram Geet Gunjan
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