परसत पद पावन

पिता की आज्ञानुसार श्री राम और लक्ष्मण गुरु विश्वामित्र के आश्रम में रह कर राक्षसों से यज्ञ की रक्षा करने लगे । एक दिन धनुष यज्ञ देखने जनक पुर जाते हुए, श्री राम ने गौतम ऋषि की पत्नी अहल्या का उद्धार किया, महामुनि की प्रेरणा से ।

गौतम नारी श्राप बस उपल देह धरि धीर ।
चरण कमल रज चाहति कृपा करहु रघुबीर ।।

परसत पद पावन, सोक नसावन, प्रगट भई तपपुंज सही ।
देखत रघुनायक, जन सुखदायक, सनमुख होइ कर जोरि रही ॥

अति प्रेम अधीरा, पुलक सरीरा, मुख नहिं आवइ बचन कही ।
अतिसय बड़भागी, चरनन्हि लागी, जुगल नयन जलधार बही ॥

मुनि श्राप जो दीन्हा, अति भल कीन्हा, परम अनुग्रह मैं माना ।
देखेउँ भरि लोचन, हरि भवमोचन, इहइ लाभ संकर जाना ॥

बिनती प्रभु मोरी, मैं मति भोरी, नाथ न मागउँ बर आना ।
पद कमल परागा, रस अनुरागा, मम मन मधुप करै पाना ॥

जनकपुर पहुँच कर भाई लक्ष्मण ने नगर देखने की लालसा प्रगट की । गुरु की आज्ञा ले दोनों भाई नगर देखने निकल पड़े ।



© श्री राम गीत गुंजन

Shri Ram Geet Gunjan
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