लेकिन श्री राम धर्म की स्थापना और लोक कल्याण के पथ पर अडिग रहे । आदर्श भ्राता भरत, अपने पूज्य श्री राम की चरण पादुका से आज्ञा माँग माँग कर अयोध्या का राज काज करर्ने लगे ।
श्री राम ने सबके प्रति बराबर स्नेह रखा । उनका साक्षात्कार होते ही ऋषि, मुनि तथा अन्य सभी जन गण, अपनी सुध बुध खो बैठते, उनकी वन्दना करने लगते ।
तू दयालु, दीन हौं, तू दानि, हौं भिखारी।
हौं प्रसिद्ध पातकी, तू पाप-पुंज-हारी॥
नाथ तू अनाथ को, अनाथ कौन मोसो।
मो समान आरत नहिं, आरतिहर तोसो॥
ब्रह्म तू, हौं जीव, तू है ठाकुर, हौं चेरो।
तात-मात, गुरु-सखा, तू सब विधि हितु मेरो॥
तोहिं मोहिं नाते अनेक, मानियै जो भावै।
ज्यों त्यों तुलसी कृपालु! चरन-सरन पावै॥
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© श्री राम गीत गुंजन
Shri Ram Geet Gunjan
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