दण्डक वन में श्री राम ने लंकापति रावण की बहन शूर्पनखा को उसके दुस्साह्स के लिये दण्ड दिया । भिक्षुक वेश बना रावण छल से सीताजी को हर ले गया ।।
गीधराज जटायु ने रावण से मुकाबला किया । पंख कट जाने से धरती पर आ गिरा । मरते मरते श्री राम से भेंट हो गयी । सीता हरण का दुःखद समाचार दे कर जटायु ने परम गति प्राप्त की ।
सीता की खोज में व्याकुल श्री राम, शबरी के आश्रम में पहुंचे और देखा कि शबरी अपने राम के ध्यान में लीन है ।
भज मन राम चरण सुखदाई ॥
जिन चरनन से निकलीं सुरसरि
शंकर जटा समायी ।
जटा शन्करी नाम पड़्यो है
त्रिभुवन तारन आयी ॥
राम चरण सुखदाई ॥
जिन्ह चरणन की चरण पादुका
भरत रह्यो लव लाई ।
सोइ चरण केवट धोइ लीन्हे
तब हरि नाव चढ़ाई ॥
राम चरण सुखदाई ॥
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© श्री राम गीत गुंजन
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