शुभ विवाह सम्पन्न हुआ, विदा की करुणामयी बेला आयी । सभी जनकपुरवासी विकल हो उठे । माता सुनयना बार बार सीता को अपने हृदय से लगाती, आशीष देतीं, स्त्री धर्म के मर्म बतलातीं ।
पुनि पुनि सीय गोद करि लेहीं ।
देइ असीस सिखावनु देहीं ॥
होएहु संतत पियहि पिआरी ।
चिरु अहिबात असीस हमारी ॥
सासु ससुर गुरु सेवा करेहू ।
पति रुख लखि आयसु अनुसरेहू ॥
बहुरि बहुरि भेटहिं महतारीं ।
कहहिं बिरंचि रचीं कत नारीं ॥
गाते बजाते बारात अयोध्या लौट आयी ।
© श्री राम गीत गुंजन
Shri Ram Geet Gunjan
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