भरत चले चित्रकूट

ननिहाल से लौटने पर भरतजी को श्री राम के वनगमन और पिता श्री दशरथ के देहान्त का हृदय विदारक समाचार मिला । भरतजी का भ्रातृ प्रेम से ओत प्रोत निश्च्छल हृदय कराह उठा । वे सबको अयोध्या वापस लाने के लिये, दल बल सहित, वन की ओर चल पड़े ।

भरत चले चित्रकूट, भैया राम को मनाने ।

मैं जानउँ निज नाथ स्वभाऊ ।
अपराधिहिं पर कोह न काहू ॥

विधि न सकेउ सहि मोर दुलारा ।
नीच बीच जननी मिसि पारा ॥

मैं ही सकल अनरथ कर मूला ।
सो सुनि समझि सहा सब सूला ॥

भरत चले चित्रकूट, भैया राम को मनाने ।

कृपासिन्धु सनमानि सुबानी ।
बैठाये समीप गहि पानी ॥

राखेहु राय सत्य मोहि त्यागी ।
तन परिहरेहु प्रेम पन लागी ॥

सो तुम करेहु करावहु मोहू ।
तात तरनि कुल पालक होहू ॥

भरत चले चित्रकूट, भैया राम को मनाने ।

अब कृपालु जस आयसु होई ।
करौं सीस धर सादर सोई ॥

सो अवलम्ब देव मोहि देई ।
अवधि पार पावौं जेहि सेई ॥

प्रभु करि कृपा पाँवड़ी दीन्हीं ।
सादर भरत सीस धर लीन्हीं ॥

भरत चले चित्रकूट, भैया राम को मनाने ।



© श्री राम गीत गुंजन

Shri Ram Geet Gunjan
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